मृत्यु सुख है

(Based on the live discourse of Param Dwij)
(परम द्विज के प्रवचन पर आधारित)

ऊँ तत् सत्; दाता याद है!

इस सृष्टि के 5 बुनियादी तत्वों में से एक बुनियादी तत्व हम हैं। हम यानि आत्मा, जो कि अनश्वर है। और हम अनश्वर भौतिक प्रकृति में, इस देह रुपी व्यवस्था में, प्रवेश करते हैं। हमारा शरीर क्योंकि भौतिक प्रकृति का एक हिस्सा है, इसलिए नश्वर है। एक अनश्वर नश्वर में प्रवेश करता है।

अगर देह रुप में इस सृष्टि में आना जीवन है, तो कई बार मन में प्रश्न उठता है कि इस जीवन में सबसे अच्छी चीज क्या है? क्या है वो चीज जो सबसे अच्छी है? अगर हम इसका ध्यान पूर्वक और चेतन दृष्टि से विश्लेषण करें तो हम पायेंगे कि जो चीज इस जीवन में सत्य, अटल और निश्चित हैं, वो ही इस जीवन की सबसे अच्छी चीज होनी चाहिए। क्योंकि असत्य और अनिश्चितता में तो ना कोई सुंदरता हो सकती हैं और ना ही आनन्द।

तो इस जीवन में क्या चीज निश्चित है?

मान लिजिये आप सुख की खोज में हैं। आपकी सुख की अपनी एक परिकल्पना है और वो कल्पना इस बात पर निर्भर करती है कि आपकी अवस्था क्या है? मान लिजिये कि कोई गरीब व्यक्ति है। तो उसकी सुख की कल्पना शायद ये होगी कि थोड़ा सा कुछ और मिल जाए। जब उसकी ये इच्छा पूरी हो जायेगी तो उसकी सुख की कल्पना एक और छलाँग लगाएगी। इतना और मिल जाए। और ये छलाँगें लगती ही जायेंगी। एक के बाद एक, और वो सुख कहीं दूर ही खड़ा रहेगा। तो वो सुख और आनन्द कहीं नहीं है। क्यों? क्योंकि वो मिलना निश्चित नहीं है। आनन्द की वो कल्पना भी निश्चित नहीं है, तो वो मिलता ही नहीं है।

आपके जीवन में, पूरे जीवन में, जन्म से लेकर जवानी और बुढ़ापे तक, पूरे जीवन में, वो क्या चीज है जो निश्चित है, और वो ही सबसे अच्छी चीज हो सकती है। और वो चीज है मृत्यु। मौत। इस भौतिक सृष्टि में, देह रुपी जीवन का अन्त। एक ही अटल सत्य है। जीवन में एक ही चीज निश्चित है और वो है मृत्यु। आपके शरीर की एक निश्चित अवधि है, फिर आपको जाना है। क्योंकि देह नश्वर है। जीवन में उतार चढ़ाव आ सकते हैं। अच्छा-बुरा हो सकता है। आनन्द कम या ज्यादा हो सकता है। लेकिन जो चीज बिल्कुल निश्चित है, वो है मृत्यु। और जो चीज जीवन का अटल सत्य व निश्चित हो, वो ही सबसे अच्छी चीज हो सकती है। मृत्यु हमारे इस जीवन की मंजिल है। सोचने की बात है कि मंजिल गलत कैसे हो सकती है? जीवन का एक मात्र सत्य, मृत्यु, गलत कैसे हो सकती है? वो बुरी कैसे हो सकती है? वो तो निश्चित है, वो तो मंजिल है इस जीवन की।

और अगर इसको हम थोड़ा सा दूसरे रुप में विश्लेषण करें कि अच्छी चीज वो है जिससे मन भागे। जिससे मन डरे। जिससे मन कोसों दूर जाए। और वो चीज भी मृत्यु है। मृत्यु से हम डरते हैं। जबकि वो ही एक निश्चित चीज है इस जीवन में। हमें मिलनी ही है। फिर उससे डर कैसा? तो मन जिससे भागे, वो ही अच्छी चीज है।

सीमा पर जवान शहीद होते हैं और हम उसे सर्वोच्च बलिदान कहते हैं। सबसे बड़ा बलिदान। क्योंकि वो ही मन का सबसे बड़ा डर है। एक ही चीज है जिससे हम भागते है। एक ही सबसे बड़ा डर है और वो है मृत्यु। और मैं ये कहता हूँ कि जिससे मन भागे, जिससे मन डरे, मन जिसे ना चाहे, जो मन की सबसे बड़ी दुविधा हो। मन का सबसे बडा डर हो। वो ही एक मात्र सबसे बडा सुख है। और क्योंकि मन मृत्यु से डरता है, तो मृत्यु ही सबसे बड़ा सुख है। वो ही एक शांति है।

आपके पास कितनी भी संपत्ति हो जाए, आपको हमेशा उससे ज्यादा चाहने की इच्छा बनी रहेगी। वो आनन्द की प्राप्ति या सुख का एहसास हो ही नहीं पाता। आप भाग-दौड़ में लगे ही रहेंगे।

कल्पना कीजिए कि आप गहरी निद्रा में हैं । आप सोए हैं, आपके पास कोई संपत्ति है या नहीं, आपको इसका एहसास भी नहीं है। ऐसी निद्रा में तो आपको अपने शरीर तक का एहसास भी नहीं है। आपके पास कुछ भी नहीं है। और जब आप ऐसी निद्रा से जगते हैं तो आपको एक अति आनन्द और सन्तोष की अनुभूति होती है। तो आनन्द शांति में है। मृत्यु सबसे बडी शांति है। वो मंजिल है, इस जीवन की। इसलिए सबसे बडा सुख है।

आप कल्पना कीजिए कि मनुष्य पैदा हो और मृत्यु न आए। मनुष्य अमर हो जाए। क्या होगा? इस संसार में धन, सम्पत्ति और चीजों को अपने या अपनों के लिए एकत्रित करने की ये भाग-दौड का जो आपके अंदर वहम है, वह कभी आपको थमने नहीं देगा और ये भाग-दौड़ कभी खत्म नहीं होगी। अगर मृत्यु न होती तो इस संसार की आप कल्पना करके देखिए। हर किसी की कभी न थमने वाली भाग दौड़, चारों तरफ झगड़े और मार-पीट। अभी तो मृत्यु है और पता है कि अगला जन्म भी होगा। आस्था है कि गलत काम करने से अगले जन्म में नुक्सान हो सकता है। कल्पना है अगले जीवन की, उसे सुखी बनाने की और शायद इस डर से इस संसार में कुछ अच्छा है। तो मेरा मानना ये है कि इस जीवन का सबसे बड़ा सुख मृत्यु है, खुद के लिए भी, दूसरों के लिए भी और संसार के लिए भी। सबसे बड़ी शान्ति मृत्यु है।

और जीवन ही दोबारा ना हो, फिर से जन्म ना हो, उस स्थिति को, मोक्ष को प्राप्त होना ही इस जीवन का उद्देश्य है। इस भौतिक संसार में जन्म लेने का प्रयोजन है।

अब आप प्रश्न करेंगे कि अगर मृत्यु सबसे बड़ा सुख है, तो जीवन का सबसे बड़ा दुख क्या है?

तो ठीक उसी तरह, जिससे मन भागे, जिससे मन डरे, वो सबसे बडा सुख और जिसे मन सबसे ज्यादा चाहे, जिसकी ओर सबसे ज्यादा ध्यान करे, जिसके प्रति सबसे ज्यादा आकर्षण हो, वो सबसे बड़ा दुख। आप सोचिए कि ऐसी क्या चीज है जिसे मन सबसे ज्यादा चाहे, जिसकी तरफ सबसे ज्यादा आकर्षित हो, जिसकी थोड़ी सी भी पीड़ा सहन न कर सके। तो आप पाएंगे कि वो ओर कुछ नहीं बल्कि हमारा शरीर है। शरीर की चाहत, शरीर की तरफ आकर्षण, शरीर की दुख और पीड़ा का डर, शरीर का रख-रखाव, उसका पालन पोषण, शरीर को सजाना इत्यादि और कुछ नहीं बल्कि मन की शरीर के प्रति चाहत है। शरीर मन का सबसे बडा आकर्षण है। और मन जिसे चाहे, वो सबसे बडा दुख है।

तो इस जीवन का सबसे बड़ा सुख है मृत्यु। और सबसे बड़ा दुख है शरीर। इसीलिए मोक्ष प्राप्ति की कामना है। मोक्ष प्राप्ति ही हमारा इस संसार में जन्म लेने का लक्ष्य है – शरीर से हमेशा के लिए छुटकारा, सदा के लिए मुक्ति। मोक्ष की प्राप्ति का साधारण शब्दों में यही अभिप्राय है कि दोबारा इस शरीर में ना आना पड़े।

इस आध्यात्मिक रास्ते पर इन सब चीजों का सोचना और इन सब चीजों की समझ होना बहुत जरुरी है, क्योंकि तभी हम अपने उस एक मोक्ष के लक्ष्य की तरफ बढ़ सकते हैं जिसकी वहज से हम जीव रुपी आत्मा इस शरीर में आए हैं। इसको अपने अंदर उतारना बहुत जरुरी है। और जिस दिन मन से मृत्यु का डर दूर हो जाएगा, आप उसी दिन से वर्तमान में जीना शुरु कर देंगे, और आपकी आध्यात्मिक यात्रा अपनी मंजिल की तरफ अग्रसर होना शुरु कर देगी।

इन्हीं भावों के साथ मैं आप सबका धन्यवाद करता हूँ और दाता से प्रार्थना करता हूँ कि हम सबको सद्बुद्धि दे और हमारी ज्ञान की समझ को बढ़ाए, ताकि हम अपने इस जीवन के उद्देश्य की तरफ बढ़ सकें, उस उद्देश्य को प्राप्त कर सकें। ।

ऊँ तत् सत्!

…परम द्विज