भौतिक चेतना के दो चैत्य विभाग हैं – एक कत्र्ता का और दूसरा भोक्ता का। हम सृष्टि का अंश होने के नाते भोक्ता हैं पर दाता का अंश होने के नाते निर्माता भी हैं। अतएव हम चीजों का आनन्द लेने के लिए उनका निर्माण करते हैं, चाहे वह आनन्द कितना भी अस्थाई क्यों ना हो। पर दाता भौतिक चेतना से मुक्त, सर्वोच्च चेतना की स्थिति में है, इसलिए भोग और गैरभोग के बीच उदासीन है। …परम द्विज

(Based on the live discourse of Param Dwij)
(परम द्विज के प्रवचन पर आधारित)