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ज्ञान की शक्ति से वर्तमान और पिछले जन्मों में किए गए कर्मों का फल नष्ट हो जाता है और ज्ञान की प्राप्ति के बाद किए गए कर्मों का फल नहीं मिलता है। …परम द्विज

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कोई भी धार्मिक स्थान धार्मिक नहीं रहता अगर लोग लड़ने के लिए वहां इकट्ठा हो। वास्तव में धर्म ही धर्म नहीं रहता अगर वह लोगों को लड़ाने का कारण हो । हमारे विश्वास समाज द्वारा निर्धारित हैं और मौलिक नहीं हैं, इसलिए शुद्ध नहीं हैं। …परम द्विज

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हमारे सम्बन्धों सहित सांसारिक वस्तुओं से हमारा मोह ही हमारे दुखों का मूल कारण है। इसलिए हमें सबसे पहले “मैं” के अहंकार को छोड़ कर दाता को समर्पित होना चाहिए। … परम द्विज

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संयम सभी अनुशासनों में सबसे मजबूत अनुशासन है जो कि धारणा (एकाग्रता, दृढ़ संकल्प और केन्द्रिता), ध्यान और समाधि (अवशोषण) का एक त्रय है। …परम द्विज

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अंगों के पूर्ण नियंत्रण हो जाने पर वैराग्य उत्पन्न होता है जो त्याग की ओर ले जाता है, जिससे मुक्ति की लालसा बढ़ती है। …परम द्विज

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निष्काम कर्म, व्यक्तिगत लाभ के लिए किए गए संस्कारों और कर्तव्यों को अस्वीकार करना है – काम्य कर्म और निषिद्ध कर्म, दोनों। …परम द्विज

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कर्म या भक्ति या ज्ञान योग एक ही मंजिल तक पहुंचने के अलग-अलग रास्ते हैं और भक्ति, कर्म और ज्ञान योग, दोनों में, सहज रूप से स्वतः ही समाहित है। …परम द्विज

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मन से पापों का नाश हो जाने पर स्थायी और अस्थायी के बीच एक दृढ़ भेदभाव पैदा होता है। …परम द्विज

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अद्यात्मिक्ता का उद्देश्य हमें शुद्ध चेतना की अवस्था का एहसास और अनुभव कराना और पूर्ण मुक्ति प्राप्त करवाना है – जीवन-मुक्ति – मोक्ष। …परम द्विज

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निष्काम कर्मयोग का मूल कारण भक्ति है क्योंकि निस्वार्थ कर्म में भक्ति निहित ही है। … परम द्विज

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