24 तत्वों से युक्त हमारी भौतिक प्रकृति पूरे ब्रह्माण्ड के पोषण में समर्थ होते हुए भी एक अस्थाई अभिव्यक्ति है, जिसका समय दाता की ऊर्जाओं द्वारा पूर्व निर्धारित है। …परम द्विज 03/04/2023 03/04/2023 24 तत्वों से युक्त हमारी भौतिक प्रकृति पूरे ब्रह्माण्ड के पोषण में समर्थ होते हुए भी एक अस्थाई अभिव्यक्ति है, जिसका समय दाता की ऊर्जाओं द्वारा पूर्व निर्धारित है। …परम द्विज Read More
दाता की सृष्टि में सकारात्मक सहयोग जीने का सही अर्थ है और यह सहयोग ही आनन्द रुपी जीवन जीने की कला है। …परम द्विज 03/04/2023 03/04/2023 दाता की सृष्टि में सकारात्मक सहयोग जीने का सही अर्थ है और यह सहयोग ही आनन्द रुपी जीवन जीने की कला है। …परम द्विज Read More
भौतिक चेतना के दो चैत्य विभाग हैं – एक कत्र्ता का और दूसरा भोक्ता का। हम सृष्टि का अंश होने के नाते भोक्ता हैं पर दाता का अंश होने के नाते निर्माता भी हैं। अतएव हम चीजों का आनन्द लेने के लिए उनका निर्माण करते हैं, चाहे वह आनन्द कितना भी अस्थाई क्यों ना हो। पर दाता भौतिक चेतना से मुक्त, सर्वोच्च चेतना की स्थिति में है, इसलिए भोग और गैरभोग के बीच उदासीन है। …परम द्विज 03/04/2023 03/04/2023 भौतिक चेतना के दो चैत्य विभाग हैं – एक कत्र्ता का और दूसरा भोक्ता का। हम सृष्टि का अंश होने के नाते भोक्ता हैं पर दाता का अंश होने के नाते निर्माता भी हैं। अतएव हम चीजों का आनन्द लेने के लिए उनका निर्माण करते हैं, चाहे वह आनन्द कितना भी अस्थाई क्यों ना हो। पर दाता भौतिक चेतना से मुक्त, सर्वोच्च चेतना की स्थिति में है, इसलिए भोग और गैरभोग के बीच उदासीन है। …परम द्विज Read More
दाता सर्वोच्च निर्माता है और हम रचना हैं। रचना रचियता नहीं हो सकती। रचना यानी सृष्टि रचनाकार के साथ केवल कुछ बनाने में सहयोग कर सकती है और ठीक ऐसे ही होता है। …परम द्विज 03/04/2023 03/04/2023 दाता सर्वोच्च निर्माता है और हम रचना हैं। रचना रचियता नहीं हो सकती। रचना यानी सृष्टि रचनाकार के साथ केवल कुछ बनाने में सहयोग कर सकती है और ठीक ऐसे ही होता है। …परम द्विज Read More
हमारा शरीर भौतिक प्रकृति का एक उत्पाद मात्र है और इसलिए शाश्वत नहीं है। शरीर सहित भौतिक चेतना से मुक्ति ही जीवन का एकमात्र उद्वेेश्य है …परम द्विज 25/03/2023 25/03/2023 हमारा शरीर भौतिक प्रकृति का एक उत्पाद मात्र है और इसलिए शाश्वत नहीं है। शरीर सहित भौतिक चेतना से मुक्ति ही जीवन का एकमात्र उद्वेेश्य है …परम द्विज Read More
दाता भौतिक रुप से दूषित या वातानुकूलित नहीं है, क्योंकि वह जन्म नहीं लेता, लेकिन समय-समय पर किसी को उसके कर्मों के आधार पर अपनी ऊर्जा से प्रबुद्ध करता है …परम द्विज 25/03/2023 25/03/2023 दाता भौतिक रुप से दूषित या वातानुकूलित नहीं है, क्योंकि वह जन्म नहीं लेता, लेकिन समय-समय पर किसी को उसके कर्मों के आधार पर अपनी ऊर्जा से प्रबुद्ध करता है …परम द्विज Read More
दाता का अंश होने के कारण हम दाता के सभी गुण लिए हैं, पर सूक्ष्म मात्रा में। आखिरकार, पानी की एक बूँद गुणों में पानी से अलग कैसे हो सकती है? …परम द्विज 25/03/2023 25/03/2023 दाता का अंश होने के कारण हम दाता के सभी गुण लिए हैं, पर सूक्ष्म मात्रा में। आखिरकार, पानी की एक बूँद गुणों में पानी से अलग कैसे हो सकती है? …परम द्विज Read More
पूर्ण ज्ञान उदय होने पर स्वयं और दाता की स्थिति में अद्वैत का भाव उत्पन्न होता है। अद्वैत का अर्थ है – ‘दो नहीं’ – लेकिन इसका अर्थ ‘एक’ भी नहीं है …परम द्विज 25/03/2023 25/03/2023 पूर्ण ज्ञान उदय होने पर स्वयं और दाता की स्थिति में अद्वैत का भाव उत्पन्न होता है। अद्वैत का अर्थ है – ‘दो नहीं’ – लेकिन इसका अर्थ ‘एक’ भी नहीं है …परम द्विज Read More
जीव होने के कारण हमारी स्थिति सचेत है और दाता की स्थिति सर्वोच्च चेतना है, जिसे हम प्राप्त नहीं कर सकते, लेकिन निकट सर्वोच्च चेतना की स्थिति प्राप्त कर सकते हैं, और यही अनुभव अद्वैत के स्वरुप का एहसास है …परम द्विज 25/03/2023 25/03/2023 जीव होने के कारण हमारी स्थिति सचेत है और दाता की स्थिति सर्वोच्च चेतना है, जिसे हम प्राप्त नहीं कर सकते, लेकिन निकट सर्वोच्च चेतना की स्थिति प्राप्त कर सकते हैं, और यही अनुभव अद्वैत के स्वरुप का एहसास है …परम द्विज Read More
ज्ञान की पूर्णता के आधार पर हम अपने सभी पूर्व कर्मों के प्रभाव को मिटा सकते हैं, क्योंकि कर्मों की अभिव्यक्ति शाश्वत नहीं है …परम द्विज 25/03/2023 25/03/2023 ज्ञान की पूर्णता के आधार पर हम अपने सभी पूर्व कर्मों के प्रभाव को मिटा सकते हैं, क्योंकि कर्मों की अभिव्यक्ति शाश्वत नहीं है …परम द्विज Read More