जैसे गर्मी और प्रकाश को आग और तरलता को तरल पदार्थ से दूर नहीं किया जा सकता, वैसे ही शान्ति, खुशी, शक्ति, ज्ञान, प्रेम, आनन्द और पवित्रता रुपी हमारे मूल संस्कारों, जो कि हमारी मूल प्रकृति और शाश्वत गुण हैं, को हमसे दूर नहीं किया जा सकता। और ये शाश्वत गुण हीं हमारा सनातन धर्म है। धर्म परिवर्तन से हमारा सनातन धर्म नहीं बदलता। …परम द्विज
विभिन्न धर्मों में हमारा धार्मिक दर्शन विश्वास के विचार को व्यक्त करता है और विश्वास समय के साथ बदल सकता है। इसलिए, हमारे धर्म और उनके प्रति सच्ची आस्था अस्थाई और अल्पकालिक हैं। …परम द्विज
24 तत्वों से युक्त हमारी भौतिक प्रकृति पूरे ब्रह्माण्ड के पोषण में समर्थ होते हुए भी एक अस्थाई अभिव्यक्ति है, जिसका समय दाता की ऊर्जाओं द्वारा पूर्व निर्धारित है। …परम द्विज
दाता की सृष्टि में सकारात्मक सहयोग जीने का सही अर्थ है और यह सहयोग ही आनन्द रुपी जीवन जीने की कला है। …परम द्विज
भौतिक चेतना के दो चैत्य विभाग हैं – एक कत्र्ता का और दूसरा भोक्ता का। हम सृष्टि का अंश होने के नाते भोक्ता हैं पर दाता का अंश होने के नाते निर्माता भी हैं। अतएव हम चीजों का आनन्द लेने के लिए उनका निर्माण करते हैं, चाहे वह आनन्द कितना भी अस्थाई क्यों ना हो। पर दाता भौतिक चेतना से मुक्त, सर्वोच्च चेतना की स्थिति में है, इसलिए भोग और गैरभोग के बीच उदासीन है। …परम द्विज
दाता सर्वोच्च निर्माता है और हम रचना हैं। रचना रचियता नहीं हो सकती। रचना यानी सृष्टि रचनाकार के साथ केवल कुछ बनाने में सहयोग कर सकती है और ठीक ऐसे ही होता है। …परम द्विज
हमारा शरीर भौतिक प्रकृति का एक उत्पाद मात्र है और इसलिए शाश्वत नहीं है। शरीर सहित भौतिक चेतना से मुक्ति ही जीवन का एकमात्र उद्वेेश्य है …परम द्विज
दाता भौतिक रुप से दूषित या वातानुकूलित नहीं है, क्योंकि वह जन्म नहीं लेता, लेकिन समय-समय पर किसी को उसके कर्मों के आधार पर अपनी ऊर्जा से प्रबुद्ध करता है …परम द्विज
दाता का अंश होने के कारण हम दाता के सभी गुण लिए हैं, पर सूक्ष्म मात्रा में। आखिरकार, पानी की एक बूँद गुणों में पानी से अलग कैसे हो सकती है? …परम द्विज