पूर्ण ज्ञान उदय होने पर स्वयं और दाता की स्थिति में अद्वैत का भाव उत्पन्न होता है। अद्वैत का अर्थ है – ‘दो नहीं’ – लेकिन इसका अर्थ ‘एक’ भी नहीं है …परम द्विज
जीव होने के कारण हमारी स्थिति सचेत है और दाता की स्थिति सर्वोच्च चेतना है, जिसे हम प्राप्त नहीं कर सकते, लेकिन निकट सर्वोच्च चेतना की स्थिति प्राप्त कर सकते हैं, और यही अनुभव अद्वैत के स्वरुप का एहसास है …परम द्विज
ज्ञान की पूर्णता के आधार पर हम अपने सभी पूर्व कर्मों के प्रभाव को मिटा सकते हैं, क्योंकि कर्मों की अभिव्यक्ति शाश्वत नहीं है …परम द्विज
जब ब्रह्मांडिय प्रकृति में कुछ भी होता है तो वह दाता के कारण होता है, क्योंकि नियंत्रक के बिना कुछ भी प्रकट नहीं हो सकता …परम द्विज
आत्मा सदैव दोष मुक्त है और जब मन भी सभी दोषों से मुक्त हो जाता है, तो वास्तविकता का ज्ञान उत्पन्न होता है …परम द्विज