पाँच बुनियादी सत्य

(Based on the live discourse of Param Dwij)
(परम द्विज के प्रवचन पर आधारित)

ऊँ तत् सत्; दाता याद है!

सत्य क्या है?

वास्तव में एक ही सत्य है। आप उसे परमात्मा कहें, ईश्वर कहें, अल्लाह कहें, दाता कहें, ऊँ कहें, या कुछ और। एब्सल्यूट ट्रुथ या परम सत्य तो सिर्फ एक ही है – परमात्मा।

लेकिन फिर भी हमारे इस पूरे ब्रहमाण्ड में, ब्रहम सत्य के आधार पर, हम पाँच बुनियादी सत्य कह सकते हैं। इन पाँच बुनियादी सत्यों में से जो सबसे बड़ा सत्य है, वो ‘परमात्मा’है। परमात्मा यानि दाता, जिसकी स्थिति नियंत्रक की है। दाता ही परम सत्य या एब्सल्यूट ट्रुथ है, जो कि निरंतर सत्य है।

दूसरा बुनियादी सत्य हम ‘आत्मा’ यानि ‘जीव हैं। जीव होते हुए हमारी स्थिति नियंत्रित की है। तो एक बुनियादी सत्य है नियंत्रक, यानि कन्ट्रोलर, और दूसरा बुनियादी सत्य है नियंत्रित, यानि कंट्रोल्ड।

तीसरा बुनियादी सत्य ‘प्रकृति’ है। प्रकृति अर्थात् भौतिक प्रकृति, जिसमें हमारा शरीर भी शामिल है। जीव रुपी आत्मा देह रुप द्वारा भौतिक प्रकृति में प्रवेश करती है।

चैथा बुनियादी सत्य ‘काल’है। काल यानि समय, अर्थात् पूरे ब्रहमाण्ड के अस्तित्व की अवधि, जिसमें भौतिक प्रकृति की अभिव्यक्ति होती है।

और पाँचवा बुनियादी सत्य है ‘कर्म’ यानि क्रिया – एक्शन। ब्रहमाण्डीय प्रकृति में जब भी कुछ होता है तो वो दाता के कारण होता है, नियंत्रक के कारण होता है,  परम सत्य के कारण होता है। प्रथम बुनियादी सत्य के कारण होता है। क्योंकि नियंत्रक के बिना कुछ भी होना संभव नहीं है।

अब प्रश्न ये उठता है कि जीव यानि आत्मा को भौतिक प्रकृति में आने की आवश्यकता क्या है? शरीर धारण करने की आवश्यकता क्या है? शरीर तो नश्वर और अल्पकालिक है। भौतिक प्रकृति का एक उत्पाद मात्र है। भौतिक प्रकृति का हिस्सा होने के कारण हमारा शरीर झूठा और अस्थायी है – शाश्वत नहीं है।

आत्मा का शरीर द्वारा भौतिक प्रकृति में आने का एक उद्देश्य है। एक कारण है, और वो कारण है पूर्ण मुक्ति प्राप्त करना। सम्पूर्ण मुक्ति प्राप्ति द्वारा परम सत्य में समाहित और सम्मिलित हो जाना। जीवन मुक्ति।

लेकिन ये कैसे सम्भव है? बिना मुक्ति प्राप्त किये, पूर्ण मुक्ति प्राप्त करना कैसे सम्भव है? तो हमें पहले मुक्ति प्राप्त करनी होगी। शरीर सहित भौतिक चेतना से मुक्ति। शरीर सहित भौतिक चेतना से मुक्ति ही सम्पूर्ण मुक्ति, यानि जीवन मुक्ति, की तरफ बढ़ा प्रथम कदम होगा। उसके बाद ही हम पूर्ण मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं। एक बार मुक्ति प्राप्त हो जाने के बाद, एक बार वो एहसास, वो रियेलाईजेशन हो जाने के बाद हम पूर्ण मुक्ति की ओर बढ़ सकते हैं। पूर्ण मुक्ति मतलब ‘मोक्ष’- मतलब जीवन मुक्ति – जिसमें जीव यानि आत्मा को दुबारा शरीर द्वारा भौतिक प्रकृति में आने की आवश्यकता ना रहे।

ऊँ तत् सत्!

…परम द्विज