प्रबुद्ध जीवन जीने के लिये तथाकथित धार्मिकता जरुरी नहीं

(Based on the live discourse of Param Dwij)
(परम द्विज के प्रवचन पर आधारित)

ऊँ तत् सत्; दाता याद है!

जीवन का अर्थ क्या है? मैं जीवन के उस एक कारण की बात नहीं कर रहा जिसके लिए हमनें जन्म लिया है। मैं बात कर रहा हूँ जीवन को जीने की कला की। जीवन को किस तरह से जिया जाए? जीवन का प्रयोजन क्या है? जीवन का अर्थ क्या है? क्या अस्तित्व में होना मात्र ही जीवन जीना है? क्या हमारा देह रुप में होना ही जीवन है?

आत्मा शाश्वत है। आत्मा कभी नहीं मरती। आत्मा अजन्मा है, अज् है, जिसका ना आदि है ना अंत है। इसलिए हम शाश्वत हैं और इस जीवन में हम अस्तित्व में हैं, व्यक्त अस्तित्व में। आत्मा जितनी बार इस देह में प्रवेश करेगी अस्तित्व में होंगे। इस ब्राह्माण्ड में अन्य सभी प्राणियों और चीजों का भी अपना-अपना अस्तित्व है लेकिन अस्तित्व में होना मात्र जीवन जीना नहीं है। अस्तित्व में होने का मतलब सिर्फ होना है, जीना नहीं।

इसलिए आज हम बात कर रहे हैं जीवन के अर्थ की, उस चीज की, जिसे हम जीवन जीने की कला कह सकते हैं।

मानव आत्मा में, सभी प्राणी आत्माओं की तुलना में, उच्चतम स्तर की चेतना होती है। और, इसीलिए मानव आत्मा में आत्म साक्षात्कार या आत्मा ज्ञान के उच्चतम संभव लक्ष्य को प्राप्त करने की क्षमता होती है। स्पष्टतः, आत्म साक्षात्कार ही आत्मा ज्ञान की सांस है। ज्ञान और कुछ नहीं, बल्कि तथ्यों और चीजों की स्पष्टता है। जैसे तथ्य और चीजें हैं, उनकी बिल्कुल वैसी ही स्पष्टत।

एक स्पष्ट और सरल जीवन जीयें। क्योंकि यही वह जीवन का एक आवश्यक अनुग्रह है जिसके साथ जीवन में ज्ञान प्रवेश करता है और जीवन का सही मार्ग दर्शन करता है। तो याद रखें, अस्तित्व में होना जीवित होना तो है पर जीवन जीना नहीं।

…और हम जीवन में जीना चाहते हैं।

जीने के लिए हमें जीवन के अर्थ को जानना होगा। एक बार जब आप अपने जीवन के उद्देश्य की खोज कर लेते हैं, तो आप यह देखकर चकित रह जायेंगे कि आपको जीना आ गया। आपने जीना शुरु कर दिया। बशर्ते आपने उस उद्देश्य के लिए काम करना शुरु कर दिया हो। और, जीवन के उद्देश्य की दिशा में काम करना मात्र ही एक उद्देश्य पूर्ण जीवन जीना है।

एक व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य दूसरे व्यक्ति के जीवन के उद्देश्य से भिन्न हो सकता है। जीवन के उददेश्य पर निर्णय लेने का आधार यह सुनिश्चित करना है कि आप किस तरह से दूसरों के जीवन को सकारात्मक रुप से प्रभावित कर सकते हैं – आत्म धोखे या छिपे हुए स्वार्थी उददेश्यों के बिना। और यह आपके कौशल और क्षमताओं पर निर्भर करेगा कि आप किस कला या कार्य में निपुण हैं। किस चीज में अच्छे हैं।

तो प्रबुद्ध जीवन जीने के लिए आपको एक तथाकथित धार्मिक व्यक्ति होने की आवश्यकता बिल्कुल नहीं है। आप कोई भी हो सकते हैं, एक शिक्षक, संगीतकार, जादूगर, व्यापारी, साधु, राजनेता या कोई और। लेकिन आप अपने कौशल को, अपनी क्षमता को पहचानिए और उसमें निपुण होइए। और जब भी आप उस क्षमता के जरिये कुछ भी कार्य करें तो सिर्फ एक चीज का ध्यान रखें कि आपको दाता की सृष्टि में एक सकारात्मक योगदान करना है। ऐसा करने से आपको जीवन का अर्थ खुद-ब-खुद मिल जाएगा।

…और, वह अर्थ और कुछ नहीं बल्कि प्रसनन्ता, खुशी और आनन्द – हर समय हर पल।

इस जीवन के प्रयोजन और अर्थ को पहचानिये, मेरी बहुत शुभ कामनाएँ।

ऊँ तत् सत्!

…परम द्विज